Saturday, September 13, 2014

***कशमोकश***

एक कशमोकश में डूबी है ज़िन्दगी
न जाने कौन से रंग में डूबी है ये ज़िन्दगी
सुना था  खुशकिस्मत वालो को मिलती है ये ज़िन्दगी
पर ये बदकिस्मती को क्यूँ कोसती है ये ज़िन्दगी

हर पल को क्यूँ कोसती है ये ज़िन्दगी
हर पल से ही तो बनी है ये ज़िन्दगी
यूँ तो लोग कहते है खूबसूरत है ये ज़िन्दगी
पर खुद लोग ही कोसते है , ज़िन्दगी को

कुदरत ने बनायीं है ये ज़िन्दगी
पर क्यूँ दुःख देती है ज़िन्दगी
कुछ मिटना चाहते है इस ज़िन्दगी में
तो कुछ मिटाना चाहते है इस ज़िन्दगी को

क्या ये खेल है ज़िन्दगी का
या खेल है खुशकिस्मती का
या खेल है बदकिस्मती का

यूँ तो कहते है ...

तकदीर हमें नहीं बनाती हम तकदीर बनाते है
किस्मत हमें नहीं हम खुद किस्मत बनाते है
तभी तो ज़िन्दगी हमें नहीं हम ज़िन्दगी बनाते है...

Friday, April 18, 2014

-.-.-.-.-चाह -.-.-.-.-.-.













चाह कर चाहत से पूछा,
क्या तू ही है मेरी आरज़ू?
क्या तू  है मेरी हकीकत?
क्या तू है मेरी बंदिशें?
क्या तू ही है मेरी इनायत?
क्या तू ही है मेरी ख्वाईशे?
क्या तू है मेरी ज़िन्दगी ?

चाह कर चाहत से पूछा -
क्यों ये अनगिनत ख्वाईशे है ??
चाह कर चाहत से पूछा -
क्यों ये अनगिनत आरज़ू है ??
चाह कर चाहत से पूछा -
क्यों ये  मेरी इनायत  है ???
चाह कर चाहत से पूछा -
क्यों ये मेरी चाहत है !!!
चाह कर चाहत से पूछा---
क्यों है ये ज़िन्दगी  ???
  

"माया "

इस माया की दुनिया ने , किस माया में डाला है  माया की ही क्या  मोह माया है , क्या होना है क्या करना है माया ने बताया है ,  माया के इस जाल से ...