वक़्त के इस चक्र पर ख्वाबो का बसेरा है,
रौशनी की इस तेज मे अंधेरो का साया है,
अँधेरे के इस साये में धुंधलाता सा एक ख्वाब है,
शबनम की इस बूदों में सिर्फ उसकी ही याद है.
वक़्त के इस चक्र पर अजनबी सा एहसास है,
अजनबी एहसास में न जाने कैसा प्यास है,
प्यासी इस दुनिया में मिटता सा ख्वाब है,
वक़्त के इस चक्र पर बस रिश्तो की आस है,
रिश्तो के इस जाल में बिकता सिर्फ एहसास है,
बिकते इस एहसास में जलता सिर्फ इन्सान है,
जलते इस इन्सान में मिटता सिर्फ वो ख्वाब है,
वक़्त से इस चक्र पर मिटता सिर्फ इन्सान है.