Thursday, May 2, 2013

धूप और छाँव

 
 
धूप की इस तपिस में, छाँव की तलाश में थे हम
यह पता न था, कोई मंजिल मिल पायेगी या नहीं
गर्मियों का मौसम है और मई महीने का दूसरा दिन
सूरज की तीखी तेज़ में झुलस रहे थे हम
 
तलाश थी ऐसी जगह की जहाँ बैठ कर कुछ खा सके हम
तलाश तो पूरी हुई लेकिन प्यास न हुई कम
निकले थे लंच पर लग रहा था हूँ काम पर
प्रकृति की गोद में, पेड़ की छाँव में, चार दोस्त थे हम
 
गप्पे मारना, मजाक करना, फोटो खीचना मस्ती में थे हम
जब्कि पिकनिक पर नहीं, असाइनमेंट पर थे हम
बिताना था पूरा एक घंटा, धूप में थे हम
धूप की इस तपिस में गुम थे हम
 
प्रकृति की छाँव में प्यास न हुई थी कम
पूरा एक घंटा न बीता पाए हम
धूप की इस तपिस में जल रहे थे हम
 एक नयी सोच के साथ वापस हुए हम.

"माया "

इस माया की दुनिया ने , किस माया में डाला है  माया की ही क्या  मोह माया है , क्या होना है क्या करना है माया ने बताया है ,  माया के इस जाल से ...